अवस्था की संकल्पना:-
"जैसे ही भूतल पर विभिन्न अपरदनात्मक कारक कार्यरत होते हैं, क्रमिक स्थलरूपों- जिनके विकास की क्रमिक अवस्थाओं में विशिष्ट विशेषताएँ होतीं हैं का निर्माण होता है।"
1- डेविस की स्थलाकृतियों के विकास का चक्रीय मॉडल "न्यून उत्क्रम माप वाले बंद तंत्र" की अवधारणा पर आधारित है।
2- प्रक्रमों की तरुणावस्था में- अधिकतम उच्चावच, अधितकम स्थितिज एवं गतिज ऊर्जा, संकरी, गहरी एवं उत्ताल घाटी, पार्श्व ढाल एवं न्यूनतम उत्क्रममाप होता है।
3- प्रक्रमों की वृद्धावस्था में- प्रवणित सरिता परिच्छेदिका, चौड़ी घाटी तथा ढाल सरल रेखी होते हैं।
4- प्रक्रमों की वृद्धावस्था में- भ्वाकृतिक तंत्र के सभी उपांगों में समान वितरित ऊर्जा, चौड़ी, सपाट, उथली घाटी, अवतल घाटी पार्श्व ढाल, न्यूनत स्थितिज एवं गतिज ऊर्जा तथा अधिकतम उत्क्रममाप होता है।
No comments:
Post a Comment