भ्वाकृतिक मापक की संकल्पना-
"भ्वाकृतिक तंत्र की स्थलाकृतिक विशेषताओं तथा स्थलरूपों के विकास की व्याख्या में भ्वाकृतिक समय एवं स्थानिक मापक महत्तवपूर्ण विचर होते हैं। स्थलाकृति समय एवं स्थान का प्रतिफल होती है।"
1- भू- आकृति विज्ञान में दो तरह के मापक प्रयोग में लाये जाते हैं-
¡- समय मापक,
¡¡- स्थानिक मापक,
2- "किसी तंत्र में बाह्य परिवर्तनों के परिणामों के परिलक्षित होने में जितना समय लगता है, उसे /परिवर्तन समय/ कहते हैं।"- जे. बी. थार्न्स
3- चक्रीय समय:- वृहद कालिक मापिक (कम से कम 1 करोड़ वर्ष की अवधि )
4- प्रवणित समय:- मध्यम कालिक मापक (100 - 1000 वर्ष का समय )
5- स्थिर समय:- सूक्ष्म कालिक समय (10 वर्ष का समय)
6- एस. ए. शूम तथा आर. डब्ल्यू. लिटी (1965) के अनुसार- "अपवाह बेसिन के 10 विचर {4 स्वतंत्र- समय, प्रारम्भिक उच्चावच, भौमिक और जलवायु तथा 6 आश्रित- वनस्पति, उच्चावच व सागर तलके ऊपर स्थलखंड का विस्तार, जल में अवसाद भार, अपवाह जल की आकारिकी, पहाड़ी ढाल की आकारिकी तथा जल} होते हैं।"
7- ग्रेगरी के अनुसार- "आकारिकी- (F) पदार्थों पर (M) प्रक्रमों (P) के निश्चित समय (dt) के दौरान कार्यों का प्रतिफल होता है।
इसे ग्रेगरी का भ्वाकृतिक समीकरण F=f (PM) dt कहते हैं।
8- संतुलन की संकल्पना:- "भ्वाकृतिक तंत्र उस समय समस्थिति दशा में आता है, जब चालन बल तथा प्रतिरोधी बल में संतुलन हो जाता है।"
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